देश में इस साल चावल के उत्पादन में 5 फीसद की गिरावट आ सकती है. नेशनल राइस रिसर्च इंस्टिट्यूट-ICAR के डायरेक्टर अमरीश कुमार नायक का कहना है कि चावल उत्पादक राज्यों पश्चिम बंगाल, ओडिशा, झारखंड, छत्तीसगढ़, पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में कम बारिश की वजह से उत्पादन में गिरावट का अनुमान है. इंस्टिट्यूट ने इन राज्यों के किसानों को कम अवधि वाले धान की फसल लगाने की सलाह दी है. कम अवधि के धान की फसल के लिए 90-110 दिन की जरूरत होती है.
धान की फसल के लिए अगले 15 दिन महत्वपूर्ण
कृषि मंत्रालय के तीसरे अग्रिम उत्पादन अनुमान के मुताबिक वित्त वर्ष 2023 में खरीफ चावल का उत्पादन 110.032 मिलियन टन था. ऐसे में अगर उत्पादन में 5 फीसद गिरावट आती है तो उत्पादन करीब 55 लाख टन घटकर करीब 10.45 करोड़ टन रह जाएगा. नायक ने कहा कि अगले 15 दिन धान की फसल के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं और कमी की पूरा करने के लिए अच्छी बारिश होनी चाहिए. उनका कहना है कि बारिश अच्छी तरह से वितरित होनी चाहिए ताकि धान की फसल की रोपाई के समय और उसके बाद के विकास में बाधा नहीं आए. कम बारिश की वजह से ओडिशा में धान की बुआई में देरी हुई है. इसी तरह देश के पूर्वी हिस्से के धान की बुआई करने वाले राज्यों में ऊपरी इलाकों के कई जिलों को कम बारिश का सामना करना पड़ा है.
देश के 267 जिलों में कम बरसात
मौसम विभाग के मुताबिक 1 जून से 24 अगस्त के बीच देश के 267 जिलों में सामान्य से कम बारिश दर्ज की गई है. जिन जिलों में कम बरसात हुई है उनमें पश्चिम बंगाल के 19, ओडिशा के 11, झारखंड के 19, बिहार के 30, उत्तर प्रदेश के 32 और छत्तीसगढ़ के 11 जिले शामिल हैं. बता दें कि पारंपरिक धान की वैरायटी को परिपक्व होने में करीब 160-200 दिन का समय लगता है. साथ ही ये वैरायटी जलवायु में होने वाले बदलाव के प्रति अतिसंवेदनशील भी होती हैं. वहीं कम अवधि की उन्नत किस्मों की कटाई करीब 90-110 दिन में की जा सकती है.
वैश्विक चावल उत्पादन 7 मिलियन टन कम रहने का अनुमान
इक्रा में कॉरपोरेट सेक्टर रेटिंग्स के वाइस प्रेसिडेंट और सेक्टर हेड मनीष पाठक के मुताबिक अलनीनो के उभार और प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियों की वजह से वित्त वर्ष 2024 में वैश्विक चावल उत्पादन में तकरीबन 7 मिलियन टन की कमी का अनुमान है, जिससे अंतर्राष्ट्रीय बाजार में चावल का भाव 1 दशक के उच्चतम स्तर पर पहुंचने की आशंका जताई जा रही है.