पिछले वित्त वर्ष 2022-23 में परिवारों की शुद्ध वित्तीय बचत करीब 55 फीसद गिरकर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 5.1 फीसद पर आ गई, जबकि इन परिवारों पर कर्ज को बोझ दोगुना से भी अधिक होकर 15.6 लाख करोड़ रुपए पर पहुंच गया. नवीनतम आधिकारिक आंकड़ों के विश्लेषण से यह जानकारी मिली है. एसबीआई रिसर्च की विश्लेषणात्मक रिपोर्ट के मुताबिक घरेलू बचत से निकासी का एक बड़ा हिस्सा भौतिक संपत्तियों में चला गया है और 2022-23 में इनपर कर्ज भी 8.2 लाख करोड़ रुपए बढ़ गया. इनमें से 7.1 लाख करोड़ रुपए आवास ऋण एवं अन्य खुदरा कर्ज के रूप में बैंकों से लिया गया है.
घरेलू बचत जीडीपी के 5.1 फीसद पर सिमटी पिछले वित्त वर्ष में घरेलू बचत गिरकर जीडीपी के 5.1 प्रतिशत पर सिमट गई, जो पिछले पांच दशक में सबसे कम है. वित्त वर्ष 2020-21 में घरेलू बचत जीडीपी के 11.5 प्रतिशत के बराबर थी, जबकि महामारी से पहले 2019-20 में यह 7.6 प्रतिशत थी. सामान्य सरकारी वित्त और गैर-वित्तीय कंपनियों के लिए कोष जुटाने का सबसे महत्वपूर्ण जरिया घरेलू बचत ही होती है. ऐसे में परिवारों की बचत का गिरना चिंता का विषय हो सकता है. राष्ट्रीय खातों में घरेलू क्षेत्र के भीतर व्यक्तियों के अलावा खेती एवं गैर-कृषि व्यवसाय जैसे सभी गैर-सरकारी, गैर-कॉर्पोरेट उद्यम, एकल स्वामित्व एवं भागीदारी जैसे प्रतिष्ठान और गैर-लाभकारी संस्थान आते हैं.
वित्तीय देनदारियां 8.2 लाख करोड़ रुपए बढ़ी भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के समूह मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोष ने कहा कि महामारी के बाद से परिवारों की वित्तीय देनदारियां 8.2 लाख करोड़ रुपए बढ़ गईं, जो सकल वित्तीय बचत में हुई 6.7 लाख करोड़ रुपए की वृद्धि से अधिक है. इस अवधि में परिवारों की संपत्ति के स्तर पर बीमा और भविष्य निधि एवं पेंशन कोष में 4.1 लाख करोड़ रुपए की बढ़ोतरी हुई. वहीं परिवारों की देनदारी के स्तर पर हुई 8.2 लाख करोड़ रुपए की वृद्धि में 7.1 लाख करोड़ रुपए वाणिज्यिक बैंकों से घरेलू उधारी का नतीजा है.
पिछले दो साल में परिवारों को दिए गए खुदरा ऋण का 55 प्रतिशत आवास, शिक्षा और वाहन पर खर्च किया गया है. घोष ने कहा कि यह संभवतः निम्न ब्याज दर व्यवस्था के कारण ऐसा हुआ है. इससे पिछले दो वर्षों में घरेलू वित्तीय बचत का स्वरूप घरेलू भौतिक बचत में बदल गया है. उन्होंने कहा कि वित्तीय परिसंपत्तियों की हिस्सेदारी घटने से वित्त वर्ष 2022-23 में भौतिक परिसंपत्तियों की हिस्सेदारी 70 प्रतिशत तक पहुंच जाने की उम्मीद है. उनका यह भी मानना है कि रियल एस्टेट क्षेत्र में सुधार और संपत्ति की कीमतें बढ़ने से भौतिक संपत्तियों की ओर रुझान बढ़ा है. महामारी के दौरान घरेलू ऋण एवं जीडीपी का अनुपात बढ़ा था लेकिन अब उसमें गिरावट आई है. मार्च, 2020 में यह अनुपात 40.7 फीसद था, लेकिन जून, 2023 में यह घटकर 36.5 प्रतिशत पर आ गया.
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