दक्षिण भारत और देश के कुछ अन्य हिस्सों में बारिश की कमी और बिजली की बढ़ती मांग के चलते कोयला संकट गहराने लगा है. घरेलू कोयला बिजली की मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है. ये बात केंद्रीय बिजली और नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री आरके सिंह ने कही. उनका कहना है कि भविष्य के लिए कोयले का आयात किया जाना चाहिए.
मंत्रालय से उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, चालू वर्ष की शुरुआत 34 मिलियन टन कोयला स्टॉक के साथ हुई थी. वर्तमान में 25.5 मिलियन टन स्टॉक उपलब्ध है. इसमें 3 प्रतिशत आयात किया गया कोयला मिलाया जा रहा है. मगर मांग लगातार बढ़ रही है, इसे पूरा करने के लिए 4 प्रतिशत आयात किया गया कोयला और मिलाया जाएगा. चालू वित्त वर्ष तक 38 मिलियन टन कोयला स्टॉक खत्म हो सकता है.
मंत्री ने इस दौरान तेलंगाना सरकार पर भी निशाना साधा और उनकी ओर से बिजली विभाग के प्राइवेटाइजेशन को लेकर लगाए गए आरोपों से इंकार किया. उन्होंने कहा कि तेलंगाना सरकार बिजली क्षेत्र के निजीकरण के बारे में झूठ फैला रही है. राज्य के स्वामित्व वाली डिस्कॉम भविष्य में भी काम करना जारी रखेंगी. अगर तेलंगाना को एनटीपीसी से बिजली नहीं चाहिए, तो कई अन्य राज्यों को बिजली की जरूरत है, ऐसे में एनटीपीसी अन्य राज्यों को बिजली देगी.
भारत दुनिया के उन पांच देशों में से एक है जहां कोयले के सबसे बड़े भंडार हैं. भारत में कोयले के सबसे बड़े उत्पादक राज्यों में झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, तेलंगना और महाराष्ट्र शामिल हैं. इसके अलावा आंध्र प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश, मेघालय, असम, सिक्किम, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश से भी कोयला मिलता है. भारत अपनी ऊर्जा ज़रूरतों का 70 फ़ीसदी से अधिक कोयला संचालित संयंत्रों से ही हासिल करता है. भारत में 90 फ़ीसदी से अधिक कोयले का उत्पादन कोल इंडिया करती है. देश में बढ़ते ईंधन की मांग को पूरा करने के लिए कोयला मंत्रालय वित्त वर्ष 2024-25 तक कोयले का उत्पादन 1.23 अरब टन कर सकता है.