प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने करीब आठ साल पहले यानी 2015 में ग्लोबल एनर्जी समिट में कहा था कि 2022 तक भारत को आयातित कच्चे तेल पर निर्भरता 10 फीसद घटानी है. उस समय भारत अपनी तेल जरूरत का करीब 77 फीसद कच्चा तेल आयात कर रहा था. लेकिन कच्चे तेल के मामले में आत्मनिर्भरता बढ़ाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो लक्ष्य दिया था, वह पूरा होना तो दूर, उल्टे आयातित कच्चे तेल पर निर्भरता 77 फीसद से बढ़कर 87 फीसद के भी पार हो गई है. केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्रालय की इकाई पेट्रोलियम प्लानिंग एनालिसिल सेल यानी PPAC के आंकड़े देखें तो वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान देश में खपत हुए कच्चे तेल में आयातित कच्चे तेल की हिस्सेदारी 87.3 फीसद दर्ज की गई है जो अब तक का रिकॉर्ड स्तर है. साल 2022-23 से पहले किसी भी वित्त वर्ष में आयातित कच्चे तेल पर भारत की निर्भरता इतनी ज्यादा नहीं थी.
भारत को महंगे भाव पर करना पड़ा तेल आयात
भारत में आयातित कच्चे तेल पर निर्भरता ऐसे समय पर बढ़ी है जब दुनियाभर में कच्चे तेल का भाव आसमान पर था. वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान ग्लोबल मार्केट में कच्चे तेल की कीमतों ने 130 डॉलर की ऊंचाई को छुआ है. आयातित क्रूड पर निर्भरता होने की वजह से भारत को महंगे भाव पर कच्चे तेल का इंपोर्ट करना पड़ा है. जिस वजह से आयात के लिए बहुमूल्य विदेशी मुद्रा भंडार का खर्च बढ़ा है.
देश में नहीं है कोई नई ऑयल फील्ड
दरअसल देश में लंबे समय से नई ऑयल फील्ड की खोज पर काम नहीं हुआ है और जो ऑयल फील्ड खोजी गई हैं उनसे तेल निकालने का काम शुरू नहीं हुआ है। सरकारी कंपनियां ओएनजीसी और ऑयल इडिया पहले से जिन ऑयल फील्ड से तेल निकाल रही हैं, वहां पर तेल के भंडार लगातार कम हो रहे हैं. इस वजह से घरेलू स्तर पर कच्चे तेल का उत्पादन लगातार कम हो रहा है और जरूरत के लिए विदेशों से कच्चे तेल का आयात बढ़ाना पड़ा है.
क्यों बढ़ा आयात?
हालांकि जानकार यह भी मानते हैं कि वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान भारत को रूस से काफी सस्ती दरों पर कच्चा तेल मिला है. रूस से सस्ता तेल मिलता देख भारतीय कंपनियों ने जमकर इंपोर्ट किया है जिस वजह से वित्तवर्ष 2022-23 के दौरान देश में कच्चे तेल के आयात में बढ़ोतरी देखने को मिली है. ऊपर से कोरोना के बाद अर्थव्यवस्था खुली है और कच्चे तेल की मांग में बढ़ोतरी देखने को मिली है. बढ़ी हुई मांग को पूरा करने के लिए भी आयात बढ़ा है.
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