कोविड के बाद से भारत में सभी शिक्षा स्तरों पर बेरोजगारी दर में गिरावट देखने को मिली है. उच्च शिक्षित समूह में जो लोग 35 या उससे अधिक उम्र के स्नातक हैं, उनके लिए बेरोजगारी दर 5% से भी कम हो गई है. मगर अभी भी स्थिति बहुत अच्छी नहीं है. दरअसल अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी की ओर से प्रकाशित स्टेट ऑफ वर्किंग इंडिया 2023 रिपोर्ट के अनुसार स्नातकों के लिए बेरोजगारी दर 15% से ऊपर बनी हुई है. वहीं 25 वर्ष से कम उम्र के स्नातकों के लिए ये 42% तक पहुंच गई है.
रिपोर्ट के अनुसार साल 2017 और 2021 के बीच नियमित वेतन रोजगार सृजन में मंदी देखने को मिली थी, लेकिन नियमित वेतन कार्यों की हिस्सेदारी रेगुलर जॉब में इजाफा हुआ है, ये 25% से बढ़कर 35% हो गई है. साल 2020-21 में महामारी के दौरान, नियमित वेतन रोजगार में 2.2 मिलियन की गिरावट आई है. आंकड़ों के अनुसार रोजगार में 3 मिलियन की वृद्धि हुई है, वहीं सेमी और अनौपचारिक नियमित वेतन रोजगार में लगभग 5.2 मिलियन की गिरावट आई दर्ज की गई है. हैरानी वाली बात यह है कि जॉब लॉस में आधा हिस्सा महिलाओं का है. कोविड संकट के कारण स्व-रोजगार की ओर लोगों का रुझान बढ़ा, जिसकी वजह से नियमित वेतन वाले काम की हिस्सेदारी में गिरावट आई है.
इसके अलावा, अध्ययन में कहा गया है कि साल 2004 तक महिलाओं के रोजगार दर में गिरावट दर्ज की थी, लेकिन बाद में स्व-रोजगार में हुई वृद्धि के कारण 2019 के बाद से महिला रोजगार दर में वृद्धि हुई है. प्री-कोविड में स्तर जहां 50% था, वहीं कोविड के बाद यह 60% तक पहुंच गया है. कोविड के दौरान कमाई पर भी गंभीर असर पड़ा. लंबे समय तक मंदी बनी रही. साल 2020 के लॉकडाउन के दो साल बाद भी, स्व-रोजगार की कमाई अप्रैल-जून 2019 तिमाही की तुलना में केवल 85% थी.
रिपोर्ट में कहा गया है कि चूंकि स्व-रोजगार और कृषि दोनों उन श्रमिकों के लिए वैकल्पिक विकल्प हैं, जिन्होंने काम खो दिया है और बेरोजगार रहने का जोखिम नहीं उठा सकते हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि लिंग आधारित आय असमानताओं में गिरावट आई है. 2004 में, वेतनभोगी महिला कर्मचारी, पुरुषों की कमाई का 70% कमाती थीं. 2017 तक अंतर कम हो गया और महिलाओं ने पुरुषों की तुलना में 76% कमाई कि तब से यह अंतर 2021-22 तक स्थिर बना हुआ है. हालांकि रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि जैसे-जैसे पति की आय बढ़ती है, महिलाओं के काम करने की संभावना कम हो जाती है.
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