इंश्योरेंस इंडस्ट्री में मिस-सेलिंग एक आम बात है. बैंक रिलेशनशिप मैनेजरों से लेकर, इंश्योरेंस एजेंट्स और ब्रोकर्स तक, एक बड़ा तबका गलत तरीके से इंश्योरेंस पॉलिसीज बेचता है. ऐसे में हम खुद को किस तरह से इंश्योरेंस मिस-सेलिंग से बचा सकते हैं. साथ ही इंश्योरेंस लेते वक्त हमें किन बातों का ध्यान रखने की जरूरत है? इंश्योरेंस समाधान के को-फाउंडर और इंश्योरेंस हेड शैलेश कुमार ने मनी9 के साथ एक खास बातचीत में इन्हीं बातों के जवाब दिए.
मिस-सेलिंग कई तरह की हो सकती है. ये गलत जानकारी के आधार पर तैयार हुआ गलत कॉन्ट्रैक्ट हो सकती है. कई दफा पॉलिसीज बेचने के चक्कर में मैच्योरिटी वैल्यू गलत बताई जाती है. ऊंचे मैच्योरिटी प्रीमियम का वादा किया जाता है. कुछ दफा प्रीमियम पेमेंट टर्म ठीक से नहीं बताया गया होताहै. एजेंट्स पहले से मौजूद बीमारियों को छिपा लेते हैं और फिर क्लेम्स खारिज हो जाते हैं. मिस-सेलिंग का एक और उदाहरण ये है कि बीमा को एक लोन या रेगुलर इनकम के तौर पर बेचा जाता है.
आंकड़े बताते हैं कि 35% लोग पहले ही साल रिन्यूअल प्रीमियम नहीं चुकाते हैं. ऐसा तब होता है जबकि इंश्योरेंस का कॉन्सेप्ट लोगों को नहीं बेचा जाता है.