तलाक का मतलब केवल पति-पत्नी के अलग होने तक सीमित नहीं है. ये मानसिक अलगाव के साथ-साथ फाइनेंशियल अलगाव भी होता है. कई दफा तलाक की एक बड़ी वजह आर्थिक मसले होते हैं. FinFix की फाउंडर प्रबलीन वाजपेयी को ऐसे कपल्स की फाइनेंशियल काउंसलिंग में पता चलता है कि पति-पत्नी में खर्चे को लेकर तनाव अलगाव की जड़ है.
फिजूल खर्ची से लेकर अपने माता-पिता को पैसे देने तक अनबन की कई वजहें होती हैं. इसलिए प्रबलीन कहती हैं कि दंपत्ति की जिंदगी का सफर एक हो सकता है, लेकिन फाइनेंशियल प्लानिंग अच्छे दिनों में भी जितनी अलग रहे उतना ही बेहतर है.
तलाक के बढ़ते मामले
2018 का एक आंकड़ा बताता है कि भारत में तलाक की दर केवल 1% के करीब है. देश में हर 1,000 में 13 लोगों का तलाक होता है. दूसरी ओर, विकसित देशों में यही तादाद 45-50% है. लेकिन, भारत में तलाक के सही आंकड़ों का पता लगाना मुश्किल है क्योंकि लोग बिना कानूनी प्रक्रिया के भी अलग हो रहे हैं और अपने सेपरेशन को छिपाते भी हैं.
कोविड लॉकडाउन के बाद कोई ऑफिशियल फिगर तो नहीं आया, लेकिन अलग अलग राज्यों से तलाक के मामलों के बढ़ने की खबरें आ रही हैं.
गोवा के कानून मंत्री ने एक अखबार को जून में बताया है कि हर 15 दिन में गोवा में 15 शादियां टूट रहीं हैं इसलिए वो एक प्री-मैरिटल काउंसलिंग शुरू करने का विचार कर रहे हैं. कोचीन के फैमिली कोर्ट में 2020- में 20-25% ज्यादा तलाक के केस दर्ज हुए तो वहीं विशाखपट्टनम में ये तादाद 30% ज्यादा है.
क्या हो फाइनेंशियल चेकलिस्ट में?
FinFix की प्रबलीन वाजपेयी के मुताबिक, कपल्स को खर्चे , संपत्ति , निवेश, लोन, बैंक अकाउंट से लेकर इंश्योरेंस की एक लिस्ट बनानी चाहिए. इसमें लोन के बारे में सारी जानकारी बहुत अहम हो जाती हैं. क्योंकि कई बार पति-पत्नी जॉइंट लोन लेते हैं और जॉइंट ओनरशिप भी होती है. ऐसे में तीन स्थितियां हो सकती हैं.
1) अगर लोन और प्रॉपर्टी जॉइंट है तो वे प्रॉपर्टी को बेचकर लोन चुकाएं. एक पार्टनर के नाम पर भी प्रॉपर्टी और होम लोन ट्रांसफर हो सकता है और वो दूसरा पार्टनर को उनके कॉन्ट्रीब्यूशन के हिसाब से पैसे दे सकते हैं.
2) लोन और प्रॉपर्टी अगर एक पार्टनर के नाम हैं और वो ही लोन भी चुका रहा/रही है तो दूसरे पार्टनर का प्रॉपर्टी पर अधिकार नहीं होगा.
3) लोन पति के नाम और घर पत्नी के नाम है तो पति को घर का मालिकाना हक मिल सकता है. जो लोन चुकाता है उसे मिलता है प्रॉपर्टी पर अधिकार.
लेकिन, अगर पत्नी के पास रहने की जगह नहीं तो उसके रहने का इंतजाम करना पति की जिम्मेदारी होगी. प्रॉपर्टी पर पत्नी का मालिकाना हक नहीं होगा, लेकिन उसके पास अगर रहने की जगह नहीं होगी तो उसे घर का एक कमरा दिया जा सकता है.
एलिमनी और मेंटेनेंस
एलिमनी की गणना को कई तय पैमाना नहीं है. ये कपल की माली हालत और बच्चों की जिम्मेदारी पर निर्भर करता है. शादी को कितने साल हुए हैं उस आधार पर भी एलिमनी तय होती है. वन टाइम पेमेंट या हर महीने के खर्चे के रूप में पैसे मिल सकते हैं.
जरूरी नहीं कि औरतों को ही एलिमनी मिले अगर पुरुष दिव्यांग है तो वो भी एलिमनी की मांग कर सकता है. एकमुश्त एलिमनी पर टैक्स नहीं लगता, लेकिन अगर हर महीने का खर्च मिलता है तो वह आमदनी मानी जाएगी और टैक्स देना होगा.
प्रबलीन की सलाह है कि अगर एकमुश्त रकम मिले तो उसे तुरंत खर्च या निवेश न करें. पैसे से जुड़ा फैसला ठंडे दिमाग से लें.