क्रिप्टो मार्केट अप्रैल में अपने ऑल-टाइम हाई पर चले गए. अमरीकी क्रिप्टो एक्सचेंज कॉइनबेस की पब्लिक लिस्टिंग के चलते ऐसा हुआ.
ऐतिहासिक तौर पर औसतन बिटकॉइन (Bitcoin) में उतार-चढ़ाव करीब 75 फीसदी है, जबकि S&P 500 की डेली वोलैटिलिटी करीब 22 फीसदी है. ऐसे में बिटकॉइन में 4 गुना ज्यादा उतार-चढ़ाव है.
22 जून को क्रिप्टो मार्केट में क्रैश देखा गया है. इसकी वजह क्रिप्टो माइनर्स पर चीन की लगाई गई सख्त पाबंदियां रही हैं. चीन ने देश में सभी तरह की क्रिप्टो माइनिंग पर रोक लगाने वाली एक पॉलिसी का ऐलान किया और क्रिप्टो मार्केट्स धराशायी हो गए.
2021 में क्रिप्टो में आई हालिया तेज गिरावट के दौरान दिलचस्प बात ये भी है कि इस मार्केट में लगातार उतार-चढ़ाव दिखाई दे रहा है.
क्रिप्टोकरेंसीज (cryptocurrencies) पर सबसे ज्यादा असर डालने वाला एक और फैक्टर एलन मस्क के मूड में होने वाला बदलाव भी है. उनके एक ट्वीट से क्रिप्टो मार्केट या तो फर्राटा भरते हैं या फिर औंधे मुंह गिर जाते हैं.
अब वे बिटकॉइन और दूसरी क्रिप्टोकरेंसी (cryptocurrencies) की एनवायरनमेंटल सस्टेनेबिलिटी की मुहिम छेड़े हुए हैं.
2013-2015 के दौरान बिटकॉइन (Bitcoin) 80 फीसदी से ज्यादा गिरा है. इसके बाद इसमें 2017 से 2018 के दौरान फिर गिरावट आई. 2017 से ये ऐसा 10वां मौका रहा है जबकि बिटकॉइन (Bitcoin) के दाम अपने ऑल-टाइम हाई से 30 फीसदी या उससे ज्यादा गिरे हैं.
एक्सपर्ट 2021 में हुए क्रिप्टो मार्केट क्रैश को 2017 के मुकाबले ज्यादा मैच्योर बता रहे हैं. यही वजह है कि संस्थागत रूप से क्रिप्टोकरेंसीज (cryptocurrencies) की स्वीकार्यता बढ़ रही है. इससे इसमें ज्यादा तेज रिकवरी के भी आसार पैदा हो रहे हैं.
माइक्रोस्ट्रैटेजी और दूसरे संस्थान अभी भी तेज रफ्तार से क्रिप्टोकरेंसी को इकट्ठा कर रहे हैं. इनमें करीब 33 हजार डॉलर के मौजूदा दाम पर बिटकॉइन की खरीदारी भी शामिल है.
भारतीय रेगुलेटरी फ्रेमवर्क अभी भी इसके लिए रेगुलेशन बनाने पर काम कर रहा है. एक अंतर-मंत्रालयी कमेटी बनी है जो कि क्रिप्टोकरेंसी के लिए नियमों पर गौर कर सकती है. सरकार इसके लिए क्रिप्टो एसेट शब्द का इस्तेमा कर रही है.