फाइनेंशियल इमरजेंसी कभी बताकर नहीं आती. अनचाही और अनदेखी परिस्थितियों में अगर आपकी सैलरी रुक जाए या कम हो जाए तो आपका खर्चा कैसे चलेगा? इसी तरह के मुश
अमेरिका और यूरोपीय देशों में यह महंगाई ही है, जो न केवल सरकारों के पसीने छुडा रही बल्कि बॉण्ड बाजार भी इसकी आहट से सहमा हुआ है.
कंपनी के मालिक अपने शेयर गिरवी रखकर कर्ज ले लेते हैं. कैसे मिलता है इस तरह का कर्ज? निवेशकों को इनमें किस बात का ध्यान रखना चाहिए? इनके बारे में ज्य
इस बार विक्रम पेड़ तक नहीं आया. बेताल की पेट में खलबली मची थी. विक्रम का इंतजार करते-करते बेताल ने भरी एक उड़ान... और क्या देखा.
हम सूंघने निकले थे बजट और विजय चौक के पार्क में मिल गए विक्रम और बेताल. ये विक्रम नए जमाने के बहसबाज और बेताल पुराना घाघ. विक्रम सवाल दाग रहा था.
पिछली बहस के बाद विक्रम सोच कर आया था कि अब बहस में नहीं फंसेगा. लेकिन पेड़ की नीचे पहुंचते ही बेताल कूद कर विक्रम के कंधे पर लद गया.
इमरजेंसी फंड नहीं बनाया तो कहीं आपको पैसों के लिए हाथ न फैलाना पड़े? कर्ज उतारने के लिए और कर्ज न लेना पड़े इसलिए ख्याल रहे कि इमरजेंसी फंड बनाने में
प्रमोटर की हिस्सेदारी का मतलब है कि कंपनी के कुल शेयरों में से प्रमोटर यानी मालिक के पास कितनी हिस्सा है. इसके बारे में और जानने के लिए देखिए ये वी
बेताल पेड़ पर बैठा सुस्ता रहा था. विक्रम ने पिछली दफा मुश्किल सवालों में जो घेर दिया था. इस बार बेताल मन बनाए बैठा था कि विक्रम की चालबाजी में नहीं आए
विक्रम चाय सुड़क रहा था. आज बेताल की तरफ जाने का मन नहीं था उसका. उधर पेड़ पर टंगा प्रेत दूर से इशारे कर रहा था, विक्रम तुझे आना होगा.