म्यूचुअल फंड्स (Mutual Fund) में निवेश करनेवालों के सामने दो इंवेस्टमेंट के तरीके हैं – एक्टिव और पैसिव म्यूचुअल फंड (Mutual Fund). इन दोनों तरीकों में बेहतर कौन है इसपर लंबी बहस होती रही है. लेकिन पिछले तीन साल की बात करें तो पैसिव फंड्स रेस में आगे दिख रहें हैं. पैसिव फंड्स के AUM में केवल एक साल में 108% की बढ़त रही. मार्च 2020 में जहां इनमें 1,48,038 करोड़ का निवेश हुआ था वही मई 2021 में ये बढ़कर 3,07,886 करोड़ हो गया. मॉर्निंग स्टार के इंडिया रिपोर्ट में पता चलता है कि मार्च 2020 से मई 2021 में हर 10 में 8 बार पैसिव फंड का रिटर्न एक्टिव फंड से बेहतर रहा है. SRE Wealthके फाउंडर और CEO कीर्तन ए शाह कहते हैं कि जब भी बाजार गिरावट के दौर का सामना करते हैं पैसिव फंंड में निवेश करने वाले फायदे में रहते हैं.
क्या होते हैं एक्टिव और पैसिव फंड ?
एक्टिव फंड्स में पैसों को किस समय और किन विकल्पों में या कौन से शेयरों में निवेश करना है ये फंड हाउस का मैनेजर तय करता है. इसलिए इसे एक्टिवली मैनेज्ड फंड कहा जाता है. मार्केट ट्रेंड से लेकर बेंचमार्क इंडेक्स पर काफी रिसर्च के आधार पर फंड मैनेजर फंड को शेप देते हैं. एक्टिव रूप से मैनेज किए जाने वाले फंड्स पर अधिक चार्ज लगता है जिसे एक्सपेंस रेशयो कहा जाता है. पैसिव फंड अपने नाम की तरह ही Passively Managed होते हैं.एक चुने हुए बेंचमार्क इंडेक्स के आधार पर ये फंड काम करते हैं. इंडेक्स में शामिल शेयरों का जो रेश्यो होता है उसी तरह इनमें निवेश होता है.ये फंड सीधे इंडेक्स के मूवमेंट को मैप करते हैं. एक्टिव मैनेजमेंट ना होने से पैसिव फंड का कॉस्ट कम रहता है. इंडेक्स और ETF पैसिव फंड होते हैं.
कब चुनें पैसिव फंड ?
2018 में SEBI ने म्युचूअल फंड की कैटगरी को बदला और कैपिंग का साइज बदल गया. जिस वजह से लार्ज , स्मॉल और मिडकैप शेयरों की परिभाषा बदल गई. कीर्तन शाह के मुताबिक पैसिव फंड के लिए यही टर्निंग प्वाइंट रहा क्योंकि एक्टिव फंड मैनेजर को नए नियम के हिसाब से बदलाव लाने पड़े और शेयरों के चुनाव का तरीका बदलना पड़ा. इसलिए कीर्तन कहते हैं कि अगर लार्ज कैप में ही निवेश करना है तो पैसिव फंड चुनिए और स्मॉल, मिड या फ्लेक्सी कैप की कैटेगरी में निवेश करना है तो एक्टिव फंड चुन सकते हैं. जब भी बाज़ार नीचे के लेव्लस पर रहते हैं तब पैसिव इवेस्टिंग काम आती है. इसलिए 2020 में पैसिव फंड का परफॉरमेंस अच्छा रहा. मार्च 2020 की गिरावट के बाद बाज़ार धीरे-धीरे आगे बढ़ा और फरवरी 2021 को नए टॉप पर था. यहां पैसिव इंवेस्टिंग करने वालों को फायदा मिला. वहीं बाज़ार में जब बढ़त रहती है तो एक्टिव स्ट्रैटजी काम करती है जब आपका फंड मैनेजर बाजार के मूवमेंट में आपको बेहतर रिटर्न देने के लिए काम करता है. पैसिव फंड्स को हमेशा लॉन्ग टर्म के लिए चुनिए
पैसिव फंड में क्या देखें?
कीर्तन तीन बातों का ख्याल रखने के लिए कहते हैं –
1) हर इंवेस्टर को सबसे पहले अपना रिस्क प्रोफाइल देखना चाहिए.
2) ट्रैकिंग डिफरेंस यानी इंडेक्स के रिटर्न और फंड के रिटर्न के बीच का अंतर देखें. जितना कम ट्रैकिंग डिफरेंस उतना अच्छा.
3)एक्स्पेंस रेश्यो की तुलना करना न भूलें. क्योंकि आपको भले ही पैसिव फंड में एक्सपेंस रेशयो कम हो लेकिन ETF जैसे पैसिव फंड में ब्रोकरेज चार्ज देना होता है.
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